लेखनी कविता - गज़ल

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गज़ल काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैंने तेरी दस्तार पे तन्कीद की हिम्मत तो नहीं अपनी पापोश को कालीन कहा है ...

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