लेखनी कविता - गज़ल

44 Part

70 times read

0 Liked

गज़ल अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया ये तेरा खत तो नहीं ...

Chapter

×