लेखनी कविता - सत्य - नागार्जुन

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सत्य / नागार्जुन  खिचड़ी विप्लव देखा हमने » सत्य को लकवा मार गया है वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है सारा दिन, सारी रात वह फटी–फटी आँखों से टुकुर–टुकुर ...

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