लेखनी कविता - अन्न पचीसी के दोहे - नागार्जुन

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अन्न पचीसी के दोहे / नागार्जुन सीधे-सादे शब्द हैं, भाव बडे ही गूढ़ अन्न-पचीसी घोख ले, अर्थ जान ले मूढ़ कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ बन्दा क्या घबरायेगा, जनता ...

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