लेखनी कविता - आये दिन बहार के - नागार्जुन

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आये दिन बहार के / नागार्जुन 'स्वेत-स्याम-रतनार' अँखिया निहार के सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के खिले हैं दाँत ज्यों दाने अनार के ...

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