लेखनी कविता - भूले स्वाद बेर के - नागार्जुन

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भूले स्वाद बेर के / नागार्जुन सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपन खा बचन बिसर गए गए देर के सबेर के ! बन गया साहूकार लंकापति विभीषण पा गए अभयदान शावक ...

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