लेखनी कविता - घिन तो नहीं आती है - नागार्जुन

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घिन तो नहीं आती है / नागार्जुन पूरी स्पीड में है ट्राम खाती है दचके पै दचके सटता है बदन से बदन पसीने से लथपथ । छूती है निगाहों को कत्थई ...

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