लेखनी कविता - कल और आज - नागार्जुन

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कल और आज / नागार्जुन  हज़ार-हज़ार बाहों वाली » अभी कल तक गालियॉं देती तुम्‍हें हताश खेतिहर, अभी कल तक धूल में नहाते थे गोरैयों के झुंड, अभी कल तक पथराई ...

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