लेखनी कविता - सुबह-सुबह - नागार्जुन

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सुबह-सुबह / नागार्जुन  खिचड़ी विप्लव देखा हमने » सुबह-सुबह तालाब के दो फेरे लगाए सुबह-सुबह रात्रि शेष की भीगी दूबों पर नंगे पाँव चहलकदमी की सुबह-सुबह हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए माघ ...

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