लेखनी कविता - शायद कोहरे में न भी दीखे - नागार्जुन

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शायद कोहरे में न भी दीखे / नागार्जुन वो गया वो गया बिल्कुल ही चला गया पहाड़ की ओट में लाल-लाल गोला सूरज का शायद सुबह-सुबह दीख जाए पूरब में शायद ...

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