लेखनी कविता - फसल - नागार्जुन

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फसल / नागार्जुन एक के नहीं, दो के नहीं, ढेर सारी नदियों के पानी का जादू: एक के नहीं, दो के नहीं, लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा: एक के ...

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