लेखनी कविता - दरिंदा - भवानीप्रसाद मिश्र

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दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र दरिंदा आदमी की आवाज़ में बोला स्वागत में मैंने अपना दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा खोलते ही समझा कि देर हो गई मानवता थोड़ी बहुत जितनी भी थी ...

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