लेखनी कविता - अब के - भवानीप्रसाद मिश्र

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अब के / भवानीप्रसाद मिश्र मुझे पंछी बनाना अब के या मछली या कली और बनाना ही हो आदमी तो किसी ऐसे ग्रह पर जहाँ यहाँ से बेहतर आदमी हो कमी ...

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