लेखनी कविता - कहीं नहीं बचे - भवानीप्रसाद मिश्र

58 Part

31 times read

0 Liked

कहीं नहीं बचे / भवानीप्रसाद मिश्र कहीं नहीं बचे हरे वृक्ष न ठीक सागर बचे हैं न ठीक नदियाँ पहाड़ उदास हैं और झरने लगभग चुप आँखों में घिरता है अँधेरा ...

Chapter

×