लेखनी कविता -झुर्रियों से भरता हुआ - भवानीप्रसाद मिश्र

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झुर्रियों से भरता हुआ / भवानीप्रसाद मिश्र झुर्रियों से भरता हुआ मेरा चेहरा पहरा बन गया है मानो तरुण मेरी इच्छाओं पर बरबस रुक जाता हूँ कदम उठाकर भी किसी ऊँचाई ...

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