लेखनी कविता - तार के खंभे - भवानीप्रसाद मिश्र

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तार के खंभे / भवानीप्रसाद मिश्र एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे किसी झाड़ से थोड़े नीचे , किसी झाड़ से लम्बे । कल ऐसे चुपचाप खड़े थे ...

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