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उठो / भवानीप्रसाद मिश्र बुरी बात है चुप मसान में बैठे-बैठे दुःख सोचना, दर्द सोचना ! शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को हाज़िर नाज़िर रखकर सपने बुरे देखना ! टूटी हुई बीन को ...