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बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी। खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी ...