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अशोक की चिन्ता- जयशंकर प्रसाद जलता है यह जीवन पतंग जीवन कितना? अति लघु क्षण, ये शलभ पुंज-से कण-कण, तृष्णा वह अनलशिखा बन दिखलाती रक्तिम यौवन। जलने की क्यों न उठे ...