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निज अलकों के अंधकार में- जयशंकर प्रसाद निज अलकों के अंधकार में तुम कैसे छिप जाओगे? इतना सजग कुतूहल! ठहरो,यह न कभी बन पाओगे ! आह, चूम लूँ जिन चरणों ...