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तुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद तुम्हारी आँखों का बचपन ! खेलता था जब अल्हड़ खेल, अजिर के उर में भरा कुलेल, हारता था हँस-हँस कर मन, आह रे वह व्यतीत ...