लेखनी कविता - ओ री मानस की गहराई- जयशंकर प्रसाद

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ओ री मानस की गहराई- जयशंकर प्रसाद ओ री मानस की गहराइ! तू सुप्त , शांत कितनी शीतल- निर्वात मेघ ज्यों पूरित जल-  नव मुकुर नीलमणि फलक अमल,  ओ परदर्शिका! चिर ...

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