लेखनी कविता - पेशोला की प्रतिध्वनि- जयशंकर प्रसाद

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पेशोला की प्रतिध्वनि- जयशंकर प्रसाद  १. अरुण करुण बिम्ब ! वह निर्धूम भस्म रहित ज्वलन पिंड! विकल विवर्तनों से विरल प्रवर्तनों में श्रमित नमित सा - पश्चिम के व्योम में है ...

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