लेखनी कविता - सच हम नहीं सच तुम नहीं - जगदीश गुप्त

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सच हम नहीं सच तुम नहीं / जगदीश गुप्त  नाव के पाँव » सच हम नहीं, सच तुम नहीं। सच है सतत संघर्ष ही। संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए ...

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