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आँख भर देखा कहाँ / जगदीश गुप्त आँख भर देखा कहाँ, आँख भर आई। अटकी ही रही दीठ वह हिमगिरी-भाल-पीठ मेरे ही आँसू के झीने पट ओट छिपी, देखता रहा बेबस, ...