लेखनी कविता - प्रकृति रमणीक है - जगदीश गुप्त

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प्रकृति रमणीक है / जगदीश गुप्त प्रकृति रमणीक है। जिसने इतना ही कहा- उसने संकुल सौंदर्य के घनीभूत भार को आत्मा के कंधों पर पूरा नहीं सहा! भीतर तक क्षण भर ...

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