लेखनी कविता - स्पर्श गीत - जगदीश गुप्त

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स्पर्श गीत / जगदीश गुप्त शब्द से मुझको छुओ फिर, देह के ये स्पर्श दाहक हैं। एक झूठी जिंदगी के बोल हैं, उद्धोष हैं चल के, ये असह, ये बहुत ही ...

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