लेखनी कविता -बात रात से - जगदीश गुप्त

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बात रात से / जगदीश गुप्त आँख-सी उजली धुली यह रात हिम शिखर पर रश्मियों के पाँव रख कर बढ़ चली कहा मैंने - रुको मैं भी साथ चलता हूँ गगन ...

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