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यात्री-मन / जगदीश गुप्त छल-छलाई आँखों से जो विवश बाहर छलक आए होंठ ने बढ़कर वही आँसू सुखाए सिहरते चिकने कपोलों पर किस अपरिभाषित व्यथा की टोह लेती उंगलियों के स्पर्श ...