लेखनी कविता -यात्री-मन - जगदीश गुप्त

38 Part

52 times read

1 Liked

यात्री-मन / जगदीश गुप्त छल-छलाई आँखों से जो विवश बाहर छलक आए होंठ ने बढ़कर वही आँसू सुखाए सिहरते चिकने कपोलों पर किस अपरिभाषित व्यथा की टोह लेती उंगलियों के स्पर्श ...

Chapter

×