लेखनी कविता -रूपांतर - जगदीश गुप्त

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रूपांतर / जगदीश गुप्त गिरती हुई धारों को तेज़ हवा के झोंके फुहारों में बदल देते हैं, दृश्य से परे देर तक लहराती रहती हैं, धारों को काटती हुई फुहारें और ...

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