लेखनी कविता - सुना है कभी तुमने रंगों को - जगदीश गुप्त

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सुना है कभी तुमने रंगों को / जगदीश गुप्त कभी-कभी उजाले का आभास अंधेरे के इतने क़रीब होता है कि दोनों को अलग-अलग पहचान पाना मुश्किल हो जाता है। धीरे-धीरे जब ...

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