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कवि वही / जगदीश गुप्त कवि वही जो अकथनीय कहे किंतु सारी मुखरता के बीच मौन रहे शब्द गूँथे स्वयं अपने गूथने पर कभी रीझे कभी खीझे कभी बोल सहे कवि ...