लेखनी कविता - खिली सरसो - जगदीश गुप्त

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खिली सरसो / जगदीश गुप्त खिली सरसों, आँख के उस पार, कितने मील पीले हो गए? अंकुरों में फूट उठता हर्ष, डूब कर उन्माद में प्रतिवर्ष, पूछता है प्रश्न हरित कछार, ...

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