लेखनी कविता - सांझ (कविता) - जगदीश गुप्त

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सांझ (कविता) / जगदीश गुप्त जिस दिन से संज्ञा आई छा गई उदासी मन में, ऊषा के दृग खुलते ही हो गई सांझ जीवन में। मुँह उतर गया है दिन का ...

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