लेखनी कविता -साँझ-1 - जगदीश गुप्त

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साँझ-1 / जगदीश गुप्त जिस दिन से संज्ञा आई छा गयी उदासी मन में ऊषा के दृग खुलते ही हो गयी सांझ जीवन में।।१।। मुँह उतर गया है दिन का तरूआें ...

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