लेखनी कविता -साँझ-3 - जगदीश गुप्त

38 Part

56 times read

1 Liked

साँझ-3 / जगदीश गुप्त किलयों के कर से जैसे, प्याली मरंद की छलकी। मेरे प्राणों में गँूजी, रूनझुन रूनझुन पायल की।।३१।। स्वगंर्ंगा की लहरों में, शशि ने छिप जाना चाहा। जिस ...

Chapter

×