लेखनी कविता -साँझ-3 - जगदीश गुप्त

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साँझ-3 / जगदीश गुप्त किलयों के कर से जैसे, प्याली मरंद की छलकी। मेरे प्राणों में गँूजी, रूनझुन रूनझुन पायल की।।३१।। स्वगंर्ंगा की लहरों में, शशि ने छिप जाना चाहा। जिस ...

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