लेखनी कविता - साँझ-6 - जगदीश गुप्त

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साँझ-6 / जगदीश गुप्त मत मेरी आेर निहारो, मेेरी आँखें हैं सूनी। फिर सुलग उठेंगी सँासें, फिर धधक उठेगी धूनी।।७६।। धीरे-धीरे होता है, उर पर प्रहार आँसू का। नभ से कुछ ...

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