लेखनी कविता -साँझ-7 - जगदीश गुप्त

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साँझ-7 / जगदीश गुप्त खो गया गगन पलकों में, पुतली पर तम की छाया। धीरे-धीरे नयनों के - तारों में चाँद समाया।।९१र्।। विधु को छूने के पहले, पड़ी दृष्टि तारों पर। ...

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