लेखनी कविता - साँझ-8 - जगदीश गुप्त

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साँझ-8 / जगदीश गुप्त नयनों ने जैसे कोई, उत्सुक उत्सव देखा हो। श्यामल पुतली के ऊपर, बन गई एक रेखा हो।।१०६।। अमृत की प्यासी आँखें, मुख छिव तकती घूमेंगी। मानस की ...

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