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साँझ-11 / जगदीश गुप्त खिल उठा मुकुल-दल सुरिमत, छिव अखिल भुवन में छाई। साकार हो गई सहसा, जैसे तरू की तरूणाई।।१५१।। कामिनी-कुंज में खोई, रजनी की सारी माया। तारक प्रसून वन ...