लेखनी कविता - साँझ-14 - जगदीश गुप्त

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साँझ-14 / जगदीश गुप्त यौवन की आतुरता में , ेजो भूल कभी हो जाती। जीवन भर उसकी सुधि से, दहका करती है छाती।।१९६।। तज कर यथाथर् की कटुता, कैसे भ्िवष्य को ...

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