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साँझ-16 / जगदीश गुप्त पागलपन के धागों में, सारी तरूनाई बुन दँू। चंदा की चल पलकों पर, चुपके से चुम्बन चुन दँू।।२२६।। स्वीकृत-िसंकेत तुम्हारे, मेरे समीप तक आयें। घन अंधकार में ...