लेखनी कविता - साँझ-16 - जगदीश गुप्त

38 Part

54 times read

1 Liked

साँझ-16 / जगदीश गुप्त पागलपन के धागों में, सारी तरूनाई बुन दँू। चंदा की चल पलकों पर, चुपके से चुम्बन चुन दँू।।२२६।। स्वीकृत-िसंकेत तुम्हारे, मेरे समीप तक आयें। घन अंधकार में ...

Chapter

×