लेखनी कविता - साँझ-17 - जगदीश गुप्त

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साँझ-17 / जगदीश गुप्त प्रत्येक हृदय स्पंिदत हो, मेरे कंपन की गति पर, छाले मेरी करूणा का, संदेश देश-देशान्तर।।२४१।। सापेक्ष विश्व निमिर्त है, कल्पना-कला के लेखे। यह भूमि दूसरा शशि है, ...

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