लेखनी कविता - सुबह हो रही थी - कुंवर नारायण

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सुबह हो रही थी / कुंवर नारायण सुबह हो रही थी कि एक चमत्कार हुआ आशा की एक किरण ने किसी बच्ची की तरह कमरे में झाँका कमरा जगमगा उठा "आओ ...

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