लेखनी कविता -कमरे में धूप - कुंवर नारायण

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कमरे में धूप / कुंवर नारायण   हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही, दीवारें सुनती रहीं। धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही। सहसा ...

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