लेखनी कविता -गले तक धरती में - कुंवर नारायण

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गले तक धरती में / कुंवर नारायण गले तक धरती में गड़े हुए भी सोच रहा हूँ कि बँधे हों हाथ और पाँव तो आकाश हो जाती है उड़ने की ताक़त ...

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