लेखनी कविता - सवेरे-सवेरे - कुंवर नारायण

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सवेरे-सवेरे / कुंवर नारायण कार्तिक की हँसमुख सुबह। नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन माँ सरीखी अभी जैसे मंदिरों में चढ़ाकर ख़ुशरंग फूल ठंड से सीत्कारती ...

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